बौद्धाचार्य शांती स्वरूप बौद्ध जी का दुःखद निधन !.
******************
डॉ.सुरजित कुमार सिंग- दिल्ली
******************
बाबासाहेब के किए हुए नामकरण की गरिमा उन्होंने हमेशा कायम रखी। महाराष्ट्र के बौद्धों से यदि पुछा जाए की दिल्ली में आपका कौन सा परिवार है तो निश्चित ही वे कहेंगे कि शांतिस्वरूपजी का परिवार उनका अपना परिवार है। अपने परिवार के करुणामयी और ‘चरथ भिक्खवे चारिकं’ को जीवन का लक्ष्य बनाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक आंबेडकरी व्यक्तित्व और सशक्त स्तंभ को खोकर हम सभी स्तब्ध है। उनकी मुस्कान भरी छवि भूलें नहीं भुलाई जा सकती।
-डॉ मधुकर सकपाळे
सम्यक प्रकाशन, दिल्ली के संस्थापक परम आदरणीय शांति स्वरूप अंकल जी का इस दुनिया से चले जाना बहुजन एवं बौद्ध आंदोलन के लिए बहुत बड़ी क्षति है। सम्यक प्रकाशन खड़ा करने के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी नहीं की थी, वे उच्च कोटि के अध्येता, कुशल सम्पादक व प्रकाशक, कुशल नेतृत्वकर्ता, ओजस्वी वक्ता, विश्व प्रसिद्ध चित्रकार थे। उन्होंने दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स से बी ऍफ़ ए किया था, वे भगवान बुद्ध और बाबा साहब अम्बेडकर के विश्व प्रसिद्ध चित्र बनाया करते थे। उनके परिनिर्वाण की सूचना भाई कपिल स्वरूप बौद्ध जी के फेसबुक से मिली। लेकिन मुझे विश्वास नहीं हुआ, तो मैंने दिल्ली में आदरणीय बहन गायत्री बौद्ध जी को फोन किया, मेरे फोन करते ही वह फफककर रोते हुए बोलीं कि भैया अंकल जी नहीं रहे। यह खबर सुनकर वर्धा में हम सब लोग व डॉ संदीप मधुकर सपकाळे जी स्तब्ध हैं। शांति स्वरूप बौद्ध अंकल जी मेरे पिताजी के मित्रों में रहे हैं और दिल्ली में मुझे उनका स्नेह हमेशा कई कार्यक्रमों में मिलता रहा है। जब मैं पहली बार उनसे मिला था, दक्षिणी दिल्ली के डॉ अंबेडकर नगर स्थित आदर्श बुद्ध विहार पर, तब उन्होंने मुझसे कहा था कि बौद्ध आंदोलन को आगे बढ़ाना है, और हमेशा एक योद्धा की तरह लड़ते रहना है। जातिवादी लोगों ने कई बार उनको फोन पर जान से मारने की धमकियां दी थीं, लेकिन वे डरे नहीं और उन धमकियों का उन्होंने डटकर मुकाबला किया। बाबा साहब डॉ आंबेडकर जी के साहित्य को दूरदराज के गांव-गांव और जन-जन तक पहुंचाने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका थी। आज बहुजन समाज में जो भी फुले साहू आंदोलन का साहित्य उपलब्ध है या बहुजन समाज के घरों में जो भी अंबेडकरवादी और बहुजन आंदोलन की किताबें हैं, उसमें कम से कम आधी किताबें सम्यक प्रकाशन से छपी होंगी। जब शांति स्वरूप अंकल भाषण देते थे, तो उनका भाषण बहुत ही क्रांतिकारी और तथ्यों से परिपूर्ण होता था। दिल्ली में जब वे अपने चेहरे पर दाढ़ी रखते थे और उन्हें अपनी नौजवानी में शान्ति स्वरूप बौद्ध की जगह क्रांति स्वरूप बौद्ध कहा जाता था। अभी तीन महीने पहले मैंने उनसे बहुत अर्जेंट में माई साहब के बारे में दो किताबें मंगवाई थीं। केवल एक फोन कर दिया था तो उन्होंने वे किताबें कपिल स्वरूप बौद्ध जी को कहकर स्पीड पोस्ट करवा दी थीं। और जब मैंने कहा कि अंकल जी पैसे कितने देने हैं तो मुझे बोले देख लिया जाएगा, क्या करना है पैसे का। जब तुम दिल्ली आना तो दे देना। एक बात करीब 22 साल पुरानी है, जब एक बार उनके द्वारा प्रकाशित किसी एक पुस्तक में प्रिंटिंग मिस्टेक थी, तब छोटी वाली बहन डॉ आशा सिंह ने उनको पत्र लिखकर सूचित किया था, लेकिन उनका व्यक्तित्व इतना बड़ा था कि उन्होंने पत्र लिखकर प्रॉपर जवाब दिया था और विनम्रता से स्वीकार किया था कि यह प्रिंटिंग मिस्टेक है और अगले संस्करण में सुधार दिया जाएगा और जितनी भी किताबें अभी स्टॉक में है, उसमें भी यह गलती सुधार दी जाएगी। उनके द्वारा लिखा वह पत्र आज भी आशा बहन के पास सुरक्षित है।
जब भी फोन मैं करता था वर्धा से, तो वे यहां से भाई डॉ संदीप सपकाले जी को भी हर बार जरूर याद कर लिया करते थे। अभी जब उनके निधन की सूचना मिली तो भाई संदीप सपकाले जी का फोन आया, उन्होंने कहा कि सुरजीत भाई यह क्या हो गया है, हमारे आंदोलन के लोग इतनी जल्दी क्यों चले जाते हैं। जबकि हमारे समाज के निष्क्रिय और दुष्ट दारूबाज बुड्ढे 90 या 100 साल तक जी जाते हैं। लेकिन जो भी लोग काम के हैं, वे इतनी जल्दी क्यों चले जाते हैं। संदीप भाई की यह बात सुनकर मैं सोच में पड़ गया, कि आखिर ऐसा क्यों है कि हमारे आंदोलन का जो भी आदमी है, वह इतनी जल्दी इस धरती से क्यों विदा हो जाता है। जबकि उसके पास करने के लिए बहुत काम है और बहुजन आंदोलन को नेतृत्व देने के लिए, उनके अनुभव की हम सबको सबसे ज्यादा जरूरत होती है। जब भी वह नागपुर आते थे, तो मुझे फोन कर कहते कि नागपुर आया हूँ, अगली बार फिर कभी वर्धा जरूर आऊँगा, लेकिन यह फिर कभी नहीं आई। हम सब इस विपदा की घड़ी में उनके परिवार के साथ खड़े हैं। उनके लिए बहुत भारी मन से नम आंखों से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
(डॉ सुरजित सिंग जी के FB वॉल से सभार)